Ncert Political science 12th ch-1 Cold War Era in world politics very important question answer & 25 MCQ

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Political science 12th | The Cold War era Class 12 Question Answers

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Very short Answer | Political science 12th

ch-1 Cold War Era in world politics very important question

Q.1 . शीतयुद्ध क्या है ?

Ans . ( Political science 12th) शीतयुद्ध वह स्थिति होती है जिसमें वातावरण तनावपूर्ण होता है , परन्तु युद्ध नहीं होता । दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति से ही शीतयुद्ध की शुरूआत हुई । इस अवधि में पूँजीवादी देशों और साम्यवादी देशों में आपसी शत्रुता और तनाव चलता रहा और वे एक – दूसरे को संदेह की दृष्टि से देखते रहे ।

इन दोनों गुटों के बीच कोई पूर्णव्यापी रक्तरंजित युद्ध नहीं छिड़ा । विभिन्न क्षेत्रों में युद्ध हुए , दोनों महाशक्तियाँ और उनके साथी देश इन युद्धों में संलग्न रहे , वे क्षेत्र विशेष के अपने साथी देश के मददगार बने , परंतु विश्व तृतीय विश्वयुद्ध से बच गया ।

Q.2 . क्यूबा का मिसाइल संकट क्या है ?

Ans . क्यूबा अमेरिका के तट से लगा हुआ एक छोटा – सा द्वीपीय देश है । क्यूबा का गठजोड़ सोवियत संघ से था । 1962 में सोवियत संघ के नेता खुश्चेव ने क्यूबा में परमाणु मिसाइलें तैनात कर दी।

इन हथियारों की तैनाती से पहली बार अमेरीका नजदीकी निशाने की सीमा में आ गया । इस प्रकार के कार्य से सोवियत संघ पहले की तुलना में अब अमेरिका के मुख्य क्षेत्र के लगभग दोगुने कानों या शहरों पर आक्रमण कर सकता था । अमेरीका ने इसके विरुद्ध कार्रवाई शुरू कर दी ।

कैनेडी ने आदेश दिया कि अमरीकी जंगी बेड़ों को आगे करके क्यूबा की तरफ जाने सोवियत जहाजों को रोका जाए । ऐसी स्थिति से आभास हो रहा था कि युद्ध होकर रहेगा । इसी को क्यूबा मिसाइल संकट कहा गया । ‘ क्यूबा मिसाइल संकट ‘ शीतयुद्ध का चरमबिंदु था ।

Q.3 . क्या शीतयुद्ध विचारधारा का संघर्ष था ?

Ans .  ( Political science 12th) शीतयुद्ध सिर्फ शक्ति प्रदर्शन , सैनिक गठबंधन अथवा शक्ति संतुलन का मामला भर नहीं था । बल्कि इसके साथ – साथ विचारधारा के स्तर पर भी एक वास्तविक संघर्ष जारी था । विश्व विचारधारा की दृष्टि से दो गुंटों में विभाजित हो गया था।

पश्चिमी गठबंधन का अगुआ अमेरिका था और यह गुट उदारवादी लोकतंत्र तथा पूँजीवादी का समर्थक था । पूर्वी गठबंधन का अगुवा सोवियत संघ था । और यह गुट समाज और साम्यवाद का समर्थक था ।

ये ही विचारधारायें एक – दूसरे की विरोधी थीं और दोनों ही गुट अपनी – अपनी विचारधारा को श्रेष्ठ सिद्ध करना चाहते थे । वे इसे राजनीतिक , आर्थिक और सामाजिक जीवन को सूत्रबद्ध करने का सबसे अच्छा तरीका मानते थे ।

Q. 4. परमाणु युद्ध के एक बड़े युद्ध का वर्णन कीजिए ।

Ans . परमाणु युद्ध का एक बड़ा उदाहरण अमेरीका द्वारा जापान के दो शहरों पर बम गिराना था । अगस्त 1945 में ये बम हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराये गये । इसके कारण जन – धन की बहुत अधिक हानि हुई । सैंकड़ों लोग मारे गये , घायल हुए और अपाहिज हो गये ।आज भी उसका प्रभाव देखा जा सकता है । इस घटना के पश्चात् जापान ने घुटने टेक दिये और दूसरे विश्व युद्ध का अंत हो गया ।

Q.5 . शीतयुद्ध के कारण बताइये ।

Ans .
1. द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् विश्व दो शक्तिशाली गुटों में विभाजित हो गया । एक ओर अमेरीका और उसके साथी राष्ट्र थे और दूसरी ओर सोवियत रूस और उसके मित्र थे ।
2. पूर्वी यूरोप में साम्यवादी दलों के उदय से अमेरीका और ब्रिटेन को खतरा उत्पन्न हो गया । वे इससे भयभीत हो गये ।
3. द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् नाटो , सीटो आदि सैनिक गुटों का निर्माण हुआ और इन गुटों में विनाशकारी हथियारों की होड़ लग गयी । फलस्वरूप गुटबंदी करने वाले देशों के बीच तनावपूर्ण वातावरण उत्पन्न हो गया ।

Q. 6. महाशक्तियों का उदय किस प्रकार शीतयुद्ध का कारण बना ?

Ans . ( Political science 12th)  द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति का कारण जो भी हो इसका परिणाम यह हुआ कि वैश्विक राजनीति के मंच पर दो महाशक्तियों का उदय हो गया । जर्मनी और जापान हार चुके थे और यूरोप तथा शेष संसार विनाश की मार झेल रहे थे । अब अमेरीका और सोवियत संघ विश्व की सबसे बड़ी शक्ति थे ।

इनके पास इतना सामर्थ्य था कि विश्व की किसी भी घटना को प्रभावित कर सकें । अमेरीका और सोवियत संघ की महाशक्ति बनाने की होड़ में एक – दूसरे के आमने – सामने होना शीतयुद्ध का कारण बना । जन्म दिया ।

Q. 8. ‘ अपरोध ‘ क्या है ?

Ans . परमाणु युद्ध होने पर विश्व को बड़े विनाश का सामना करना पड़ता । यह निश्चित करना मुश्किल हो जाता है कि विजेता कौन है ? अगर कोई अपने शत्रु पर आक्रमण करके उसके परमाणु हथियारों को नाकाम करने की कोशिश करता है।

तब भी दूसरे के पास बर्बाद करने लायक हथियार बच जायेंगे । इसे ‘ अपरोध ‘ ( रोक और संतुलन ) का तर्क कहा गया । दोनों ही पक्षों के पास एक – दूसरे के मुकाबले और परस्पर नुकसान पहुँचाने की इतनी क्षमता होती है कि कोई भी पक्ष युद्ध का खतरा उठाना नहीं चाहता । इस प्रकार महाशक्तियों के बीच इन गहन प्रतिद्वन्द्विता होने के बावजूद शीतयुद्ध रक्तरंजित युद्ध का रूप नहीं ले सका ।

Q.9 . शीतयुद्ध के दौरान प्रत्येक प्रतिस्पर्धी गुट के तीन सदस्य देशों के नाम बताइए ।

Ans .
1. पूँजीवादी गुट – फ्रांस , इंग्लैंड , अमेरिका
2. साम्यवादी गुट- सोवियत संघ , पोलैंड , रोमानिया ।

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Q.10 . नाटो क्या है ?

Ans . नाटो एक सैनिक संगठन था । सोवियत रूस के प्रसार विरुद्ध अमेरीका , इंग्लैंड , फ्रांस कनाडा , आइसलैंड , नार्वे , नीदरलैंड , बेल्जियम और पुर्तगाल आदि 12 देशों में आपसी संधि 197 ई ० में हुई । इसकी मुख्य शर्त यह थी कि यदि कोई अन्य देश इनमें से किसी पर भी आक्रमण करेगा तो सभी मिलकर उसका मुकाबला करेंगे ।

Q11 . ‘ वारसा पैक्ट ‘ में कौन – कौन से देश शामिल थे ? 

Ans . ( Political science 12th)  वारसा पैक्ट एक सैनिक संधि है , जिसमें रूस , अल्बानिया , बुल्गारिया , रूमानिया , पू जर्मनी , चैकोस्लोवाकिया , हंगरी और पोलैंड आदि देश शामिल थे । ये संगठन नाटो संगठन विरुद्ध था ।

Q.12. गुट – निरपेक्ष आंदोलन में भारत के क्या उद्देश्य थे ?

Ans .
1. भारत ने अपने को गुट संघर्ष में सम्मिलित करने की अपेक्षा देश की आर्थि सामाजिक तथा राजनीतिक प्रगति की ओर ध्यान देने में अधिक लाभ समझा क्योंकि हमारे सामन अपनी प्रगति अधिक आवश्यक थी ।

2. सरकार द्वारा किसी भी गुट के साथ मिलने से यहाँ की जनता में भी विभाजनकारी वृत्ति उत्पन्न होने का भय था और उससे राष्ट्रीय एकता को धक्का लगता ।

3. किसी भी गुट के साथ मिलने और उसका पिछलग्गू बनने से राष्ट्र की स्वतंत्रता कुछ अंश तक अवश्य प्रभावित होती ।

4. भारत स्वयं एक महान देश है और इसे अपने क्षेत्र में अपनी स्थिति को महत्त्वपूर्ण बनाने के लिए किसी बाहरी शक्ति की आवश्यकता नहीं थी ।

Q.13. उपनिवेशीकरण की समाप्ति और गुट – निरपेक्ष आंदोलन के विस्तार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ।

Ans . उपनिवेशीकरण तथा गुट – निरपेक्ष आंदोलन का विस्तार – गुट निरपेक्ष आंदोलन का विस्तार तथा उपनिवेशीकरण की समाप्ति एक – दूसरे से संबंधित रहे हैं । जैसे – जैसे विउपनिवेशीकरण का कारण उपनिवेशों को स्वतंत्रता प्राप्त होती गयी , वैसे – वैसे त्रुट – निरपेक्ष आंदोलन का वि होता गया ।

1960-70 में 25 उपनिवेशों को स्वतंत्रता मिली । इस कारण 1979 के नुट – निरपेक्ष सम्मेलन में 53 देशों ने भाग लिया । 1971-83 में 28 उपनिवेशों को स्वतंत्रता मिली और हवाना सम्मेलन ( 1979 ) में 92 देशों ने भाग लिया था । 1983 के सातवें ( भारत ) गुट – निरपेक्ष आंदोलन में 101 देशों ने तथा 2006 में हवाना ( वजूदा ) में हुए 14 वें सन्मेलन में 116 सदस्य – देश व 15 पर्यवेक्षक टेशों ने भाग लिया ।

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SHORT ANSWER TYPE QUESTIONS | Political science 12th ch-1 Cold War Era in world politics very important question

Q. 01. क्यूबा के मिसाइल संकट की उत्पत्ति किस प्रकार हुई ?

Ans . क्यूबा का गठजोड़ सोवियत संघ से था । 1961 की अप्रैल में सोवियत संघ के नेताओं को यह चिंता सता रही थी कि अमेरिका क्यूबा पर आक्रमण न कर दे । 1962 ई ० में सोवियत संघ के नेता खुश्चेव ने क्यूबा में परमाणु मिसाइलें तैनात कर दी ।

इन हथियारों की तैनाती से पहली बार अमेरीका नजदीकी निशाने पर आ गया । हथियारों की इस तैनाती के बाद सोवियत संघ पहले की तुलना में अब अमेरीका के मुख्य भूभाग के लगभग दोगुने ठिकानों या शहरों पर आक्रमण कर सकता था ।

सोवियत संघ के इस कार्य से अमेरीका की चिंता बढ़ गई और परमाणु युद्ध के भय से इसमें वह हस्तक्षेप नहीं करना चाहता था । अन्ततः अमरीकी राष्ट्रपति कैनेडी ने आदेश दिया कि अमरीकी जंगी बेड़ों को आगे करके क्यूबा की तरफ जाने वाले सोवियत जहाजों को रोका जाए ।

इस प्रकार अमेरीका सोवियत संघ को मामले के प्रति अपनी गंभीरता की चेतावनी देना चाहता था । ऐसी स्थिति में यह लगा कि युद्ध होकर रहेगा । इसी को ‘ क्यूबा मिसाइल संकट ‘ के रूप में जाना गया ।

Q. 2. शीतयुद्ध की उत्पत्ति के मूल कारण कौन – कौन से थे ?

Ans . शीतयुद्ध की उत्पत्ति के कारण : शीतयुद्ध वह अवस्था है जब वातावरण अत्यधिक उत्तेजित हो परंतु वास्तविक रूप में कोई युद्ध न हो रहा हो । यह अवस्था निम्नलिखित कारणों से उत्पन्न हुई :-

1. रूस में साम्यवादी सरकार की स्थापना से अमेरीका , ब्रिटेन और पश्चिमी यूरोप के देश भयभीत हो गये । साम्यवाद का यह भय उन्हें दिनों – रात खाये जा रहा था ।

2. रूस के अलावा पूर्वी यूरोप के अनेक देशों- पोलैंड , हंगरी , रूमानिया , बुल्गारिया आदि में साम्यवादी सरकारें स्थापित हुई । इससे अमेरिका और उसके साथी राष्ट्रों की बेचैनी और बढ़ गई ।

3. द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् अमेरीका और पश्चिमी यूरोप के देश विश्व राजनीति में अनुचित हस्तक्षेप करने लगे । वे विभिन्न देशों में चलने वाले स्वतंत्रता आंदोलनों को कुचलने लगे । ऐसे में इन देशों में महाशक्तियों के प्रति शंका उत्पन्न हो गई ।

4. संयुक्त राष्ट्र संघ दोनों साम्यवादियों एवं पूँजीवादियों के मन से एक – दूसरे के प्रति श और भय के विचारों को दूर करने में असफल सिद्ध हुआ । इसलिए विश्व में पर्याप्त समय तक युद्ध का सा वातावरण बना रहा ।

Q3:- 1945 अमेरीका द्वारा जापान पर बम गिराया जाना क्या उचित था ?

Ans . 1945 में अमेरीका ने जापान के दो शहरों – हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराये और जापान को हार स्वीकार करनी पड़ी । अमेरीका के इस फैसले की विश्व में कटु आलोचना हुई ।

आलोचकों का कहना है कि अमेरीका इस बात को जानता था कि जापान आत्म समर्पण करने वाला है ऐसे में बम गिराया जाना गैर जरूरी था । वस्तुतः अमेरीका की इस कार्रवाई का लक्ष्य सोवियत संघ को एशिया तथा अन्य जगहों पर सैन्य और राजनीतिक लाभ उठाने से रोकना था ।

वह सोवियत संघ के सामने ये भी जाहिर करना चाहता था कि अमेरीका ही सबसे बड़ी ताकत है । अमेरीका के समर्थकों का कहना था कि युद्ध को शीघ्रता से समाप्त करने तथा अमेरीका तथा साथ ही राष्ट्रों के आगे की जनहानि को रोकने के लिए परमाणु बम गिराना जरूरी था ।

Q. 4. नाटो ( NATO ) संगठन का वर्णन कीजिए ।

Ans .  ( Political science 12th) नाटो ( NATO ) संगठन इसका पूरा नाम उत्तर अंधमहासागर संधि संगठन ( North Atlantic Treaty Organisation ) है । इसमें अमेरीका , इंग्लैंड , फ्रांस , कनाडा , आइसलैंड , नार्वे , नीदरलैंड , बेल्जियम , पुर्तगाल , इटली आदि 12 देश थे परंतु बाद में इसमें यूनान , तुर्की तथा पश्चिमी जर्मनी भी शामिल हो गये ।

इस संधि संगठन की मुख्य शर्ते निम्नलिखित हैं :-

1. शान्ति के समय विभिन्न देश एक – दूसरे को आर्थिक सहयोग देंगे ।
2. आपसी विवादों को आपसी बातचीत द्वारा हल करेंगे ।
3. यदि कोई अन्य देश इनमें से किसी पर आक्रमण करेगा तो सब मिलकर उसका मुकाबला करेंगे ।
4. प्रत्येक देश अपनी सैनिक शक्ति को संगठित करेगा तथा इस कार्य में अमरीका उसकी सहायता करेगा ।

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Q. 5 सीटो ( SEATO ) क्या है ?

Ans . सीटो ( SEATO ) — इस संधि संगठन का पूरा नाम दक्षिण – पूर्व एशिया संधि संगठन ( South – East Asia Treaty Organisation ) है । 1954 में इस संधि का मुख्य उद्देश्य दक्षिण – पूर्व एशिया में बढ़ते हुए चीनी वेग को रोकना है और इस उद्देश्य के लिए यथोचित तैयारी करना है । इसमें फिलिपाइन , थाइलैंड , इंग्लैंड , फ्रांस , पाकिस्तान , आस्ट्रेलिया , न्यूजीलैंड तथा अमेरीका आदि शामिल है ।

Q6 . सेन्टो ( CENTO ) का क्या उद्देश्य है ?

Ans . सेन्टो ( CENTO ) – इसका पूरा नाम केन्द्रीय संधि ( Central Treaty Organisation ) है । पहले इसका नाम बगदाद पैक्ट ( Baghdad Pact ) था , जब इसमें केवल तुर्की और ईरान थे । बाद में 1955 में इस गठबंधन में संयुक्त राज्य अमेरिका , इंग्लैंड , ईरान और पाकिस्तान भी शामिल हो गये । परंतु बाद में इराक इससे निकल गया । इस संधि संगठन का मुख्य उद्देश्य रूस की भक्ति को दक्षिण की ओर बढ़ने से रोकना है ।

Q. 7. वारसा पैक्ट ( Warsaw Pact ) का वर्णन कीजिए ।

Ans . वारसा पैक्ट ( Warsaw Pact ) – इस संधि संगठन में रूस , अल्वानिया , बुल्गारिया , रूमानिया , पूर्वी जर्मनी , चैकोस्लोवाकिया , हंगरी तथा पोलैंड आदि थे । इन साम्यवादी देशों ने इस संगठन नाटो , सीटो और सेन्टो आदि का विरोध किया ।

इसका मुख्य उद्देश्य यह था कि यदि कोई देश इस संगठन में शामिल किसी देश पर भी आक्रमण करेगा तो सब मिलकर उसका मुकाबला करेंगे । इसके अलावा कोई भी सदस्य देश अपनी सेनायें किसी अन्य देश की सरकार की अनुमति से वहाँ रख सकता है ।

Q. 8. महाशक्तियों के गुट में शामिल छोटे देश किस प्रकार महाशक्तियों के लिए उपयोगी थे ?

Ans . निम्नलिखित कारणों से छोटे देश महाशक्तियों के लिए उपयोगी थे 1. छोटे देशों के महत्त्वपूर्ण संसाधन जैसे तेल और खनिज थे जो महाशक्तियों के काम आ सकते थे । 2. छोटे देशों के भूक्षेत्र का महाशक्तियाँ अपने हथियार और सेना के संचालन के लिए प्रयोग कर सकती थीं । 3. वे छोटे देशों के अपने सैनिक ठिकाने स्थापित कर सकती थी और जहाँ से वे एक – दूसरे पर जासूसी कर सकते थे ।

Q9. भारत की विदेश नीति में गुटनिरपेक्षता का महत्त्व बताइए ।

Ans . भारत की विदेश नीति का एक मूल सिद्धान्त गुटनिरपेक्षता है । इसका अर्थ है कि भारत अंतर्राष्ट्रीय विषयों के सम्बन्ध में अपनी स्वतंत्र निर्णय लेने की नीति का पालन करता है । द्वारा विश्व 1991 तक दो गुटों में विभाजित था- एक अमेरिकी गुट तथा दूसरा सोवियत संघ के नेतृत्व में साम्यवादी गुट भारत ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अपनी विदेश नीति में गुट के सिद्धान्त को अत्यधिक महत्त्व दिया । गुटनिरपेक्ष आंदोलन को जन्म देने तथा उसको बनाए रखने में भारत की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है ।

1961 से लेकर 24 फरवरी , 2003 द्वारा इसके 13 वें शिखर सम्मेलन ( कुआलालम्पुर ) तक भारत ने इसको बराबर सशक्त बनाए रखने का प्रयत्न किया है । भारत प्रत्येक अंतर्राष्ट्रीय समस्या का समर्थन या विरोध उसमें निहित गुण और दोषों के आधार पर करता रहा है । भारत ने यह नीति अपने देश की राजनीतिक , आर्थिक और भौगोलिक स्थितियों को देखते हुए अपनायी है ।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही भारत को अमेरिकन तथा पूर्व सोवियत संघ के गुटों ने अपनी ओर आकर्षित करने तथा अपने गुट में शामिल करने का प्रयास किया परंतु भारत किसी भी गुट में शामिल नहीं हुआ । नेहरू , नासिर तथा टीटो के द्वारा शुरू या गया गुट निरपेक्ष आन्दोलन आज 116 राष्ट्रों की सदस्यता से परिपूर्ण है । अभी तक भारत 15 आम चुनाव हो चुके हैं । प्रत्येक बार बनने वाली सरकारों ने अपनी विदेशी नीति में गुदा की नीति ही अपनायी है ।

Q10. . भारत- सोवियत संधि ( 1971 ) पर टिप्पणी लिखो ।

Ans . अमेरिका के चीन तथा पाकिस्तान के चीन तथा अमेरिका से सैनिक सहायता प्राप्त करने की स्थिति को देखते हुए तथा 1971 में भारत का पाकिस्तान के साथ बंगलादेश संकट के कारण होने वाले संघर्ष के परिणामस्वरूप अगस्त 1971 में भारत और सोवियत संघ के बीच मैत्री और सहयोग की संधि हुई ।

यह संधि भारत द्वारा प्रथम बार किसी महाशक्ति के साथ की गयी राजनीतिक संधि थी । कुछ विशेषज्ञों द्वारा इस संधि को भारत का गुटनिरपेक्ष आंदोलन से विचलन ‘ Deviation ) कहा गया । अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में यह भारत और सोवियत संघ के पारस्परिक और सामान्य उद्देश्यों से प्रेरित थी । इस संधि का 1991 में पुनः नवीनीकरण किया गया । सोवियत संघ में बिखराव के बाद भी यह संधि भारत और रूस के मध्य बरकरार है ।

इस संधि के संदर्भ में दोनों देशों ने एक – दूसरे की राष्ट्रीयता , स्वतंत्रता , उपनिवेशवाद के विरुद्ध संघर्ष , जातीय और नस्लीय भेदभाव के विरुद्ध संघर्ष , पराधीन देशों के स्वतंत्रता संघर्ष में साथ देने आदि के सिद्धान्तों का पालन करने का वचन दिया तथा दोनों में से किसी एक देश पर बाह्य आक्रमण की परिस्थिति में दोनों देश मिलकर उसका मुकाबला करेंगे ।

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Q11. , गुट – निरपेक्षता और तटस्थता में अंतर बताएँ ।

Ans . गुट – निरपेक्षता और तटस्थता में अंतर ( Difference between Non – Align ment and Neutrality ) — जब भारत ने अपने को गुट निरपेक्ष बताया और गुट निरपेक्षता की ति को अपनाया तो अमेरिका आदि राष्ट्रों ने इसे तटस्थता की नीति बताया । कुछ राजनीतिज्ञों ने इसे अवसरवादी नीति का नाम दिया । परंतु गुट निरपेक्षता तटस्थ नहीं है ।

जवाहरलाल नेहरू ने 1960 में संयुक्त राष्ट्र संघ के संवाददाताओं को स्पष्ट किया था कि गुट – निरपेक्षता का यह अर्थ नहीं कि अंतर्राष्ट्रीय मामलों से हमारा कुछ लेना – देना नहीं है और हम उनके बारे में चुप्पी साधे रहेंगे । गुट – निरपेक्षता का अर्थ है कि न हम किसी सैनिक गठबंधन में सम्मिलित होंगे और न हीकिसी गुटबंदी में भागीदारी करेंगे ।

हम प्रत्येक मामले पर अंधाधुंध , बिना सोचे किसी एक गुट का साथ देने की अपेक्षा खुले मन से उस पर विचार करेंगे , उसके अच्छे – बुरे परिणामों को ध्यान में रखकर अपने विचार प्रकट करेंगे । गुट – निरपेक्षता और तटस्थता में निम्नलिखित अंतर हैं:-

1. ‘ तटस्थता ’ शब्द का प्रयोग केवल युद्ध की स्थिति में होता है जबकि ‘ गुटं – निरपेक्षता ’ का प्रयोग मुख्य रूप से शांति के समय में और युद्ध के समय भी होता है ।

2. ‘ तटस्थता ‘ शब्द का प्रयोग अंतर्राष्ट्रीय कानून में होता है जबकि ‘ गुट – निरपेक्षता ‘ का प्रयोग अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में किया जाता है ।

3. ‘ तटस्थता ‘ युद्ध में भाग न लेने की शर्त से संबंध रखती है , परंतु ‘ गुट – निरपेक्षता ‘ समझौतों , शक्ति – गुटों के बीच संघर्षों के तनाव में भाग न लेने से है ।

4. ‘ तटस्थता ’ नकारात्मक है । तटस्थ देश युद्ध में लिप्त किसी भी पक्ष का समर्थन या आलोचना नहीं करता , बल्कि चुपचाप देखता है । परंतु ‘ गुट – निरपेक्षता ‘ सकारात्मक है और गुट – निरपेक्ष देश आक्रमणकारी या अत्याचारी देश के विरुद्ध आवाज भी उठाता है और अच्छे कार्यों के लिए उसी देश की प्रशंसा भी कर सकता है ।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ( LONG ANSWER TYPE QUESTIONS ) Political science 12th

Q.1 शीतयुद्ध से आप क्या समझते हैं ? इसके कारणों का वर्णन कीजिए ।

Ans . शीतयुद्ध का अर्थ ( Meaning of Cold War ) – द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद विश्व की राजनीति में दो महाशक्तियाँ उभरकर आई संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ । दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ये दोनों राष्ट्र मित्र राष्ट्रों के सहयोगी थे और धुरी राष्ट्रों की पराजय में दोनों ने ही भूमिका निभाई ।  ( Political science 12th)

परंतु दूसरे युद्ध की समाप्ति के बाद दोनों में कटूटर प्रतिद्वंद्विता , संघर्ष और शत्रुता उभरी तथा विकसित हुई । दोनों ने विश्व की राजनीति में एक दूसरे को पछाड़ने और अपना वर्चस्व स्थापित करने के प्रयत्न किए और अपने अलग – अलग सैनिक गठबंधन भी बना लिए । इस प्रकार संसार के लगभग सभी देश इन दोनों गुटों में से किसी एक के साथ थे और विश्व की इस स्थिति को दो ध्रुवियता ( Bipolarism of the World ) कहा जाता है ।

अमेरिकन गुट को प्रथम दुनिया तथा सोवियत संघ के गुट को दूसरी दुनिया के नाम से पुकारा जाता था । इन दोनों महाशक्तियों के बीच चले संघर्ष , खींचातानी , शत्रुता , धमकियों , अविश्वास , कूटनीतिक जोड़ – तोड़ , सैनिक स्पर्धा , एक – दूसरे की जासूसी आदि की वातों ने संसार में भय , अनिश्चय और कभी भी विश्वयुद्ध होने की संभावना से असुरक्षा की भावना पैदा की और इस वातावरण को शीतयुद्ध का नाम दिया जाता है ।

इसका काल 1950 से 1990 तक माना जाता है जबकि सोवियत संघ की शक्ति क्षीण हुई और दिसम्बर 1991 में सोवियत संघ का विघटन हुआ । इसे सशस्त्र शान्ति ( armed peace ) का काल भी कहा जाता है । नारमन ने लिखा है कि “ शीतयुद्ध आधुनिक समय का सबसे अधिक रहस्यमयी अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष रहा है । “

सशस्त्र युद्ध न होते हुए भी यह युद्ध की सी परिस्थितियों को बनाए रखने की कला थी जिसमें दोनों गुट अपने – अपने स्वार्थ तथा राजनीतिक हितों को ध्यान में रखकर प्रत्येक घटना तथा विश्वव्यापी प्रश्न पर विचार रखते और प्रकट करते थे तथा अपनी गतिविधियों का संचालन करते थे । यह दोनों गुटों के बीच वर्चस्व की प्राप्ति के लिए शक्ति संघर्ष था ।

शीत युद्ध की परिभाषा देते हुए जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि “ शीतयुद्ध पुरातन शक्ति संतुलन की धारणा का नया रूप है । यह दो विचारधाराओं का संघर्ष न होकर दो भीमकाय शक्तियों का आपसी संघर्ष है ।

शीतयुद्ध के कारण ( Causes of the Cold War ) — दूसरे विश्वयुद्ध में संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ दोनों ही मित्र राष्ट्रों ( Allied nations ) में सम्मिलित थे और घुरी शक्तियों ( Axis Power ) को हराने में भूमिका निभाने वाले थे । फिर ऐसी क्या घटनाएँ घटीं जिनके कारण दूसरे विश्व युद्ध के बाद दोनों में घोर शत्रुता उत्पन्न हुई और उन्होंने एक दूसरे के विरुद्ध अपने – अपने सैनिक गठबंधन स्थापित किए , एक दूसरे का हर मंच और हर प्रकार से विरोध किया और संसार में शीत युद्ध का वातावरण बना ।

शीतयुद्ध के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे :-

1. पश्चिमी देश साम्यवाद के विरोधी – पश्चिमी यूरोपीय देश आरंभ से ही मार्क्सवादी विचारधारा तथा साम्यवाद के विरोधी रहे हैं और उन्होंने साम्यवाद के प्रसार को रोकने के प्रयास किए हैं । 1917 में जब रूस की क्रांति द्वारा वहाँ सोवियत संघ की स्थापना हुई तो उन्होंने इसे आसानी से मान्यता नहीं दी । इंग्लैंड ने उसे 1924 में मान्यता दी तो अमेरिका ने 1933 में । दूसरे विश्वयुद्ध में भी वे जर्मनी के नाजी प्रशासन की अपेक्षा सोवियत संघ को अधिक आशंका की दृष्टि से देखते थे और ऐसा अनुमान है कि उन्होंने जर्मनी को रूस पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया था ।

2. दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिका या सोवियत संघ का महाशक्तियों के रूप में उभरना – दूसरे विश्वयुद्ध से पहले विश्व की राजनीति में इंग्लैंड और फ्रांस का अधिक प्रभाव था और उन्हें ही महाशक्तियों के रूप में देखा जाता था । दूसरे विश्व युद्ध से इनकी स्थिति को धक्का लगा और अमेरिका तथा सोवियत संघ ने प्रभावकारी स्थिति प्राप्त की , वे दो महाशक्तियों के रूप में उभर कर आए । इन्होंने युद्ध के दौरान बहुत से देशों के प्रदेशों पर अपना कब्जा कर लिया था । दोनों ही युद्ध के परिणामों अधिक से अधिक लाभ उठाना चाहते थे , अपने कब्जों को बनाए रखकर अपनी स्थिति को और भी मजबूत बनाना चाहते थे ।

3. दोनों के युद्धोत्तर उद्देश्य में अंतर – दूसरे युद्ध के दौरान दोनों देशों का उद्देश्य धुरी शक्तियों को दबाना था और वे साथ – साथ रहे । परन्तु युद्ध की समाप्ति पर दोनों के उद्देश्यों में परिवर्तन आया और उनके एक – दूसरे तो विरोधी उद्देश्य उभरकर आए । अक तथा अन्यपश्चिमी यूरोप के देश आरंभ से ही सोवितय संघ के विरुद्ध थे , इसकी ओर आशंका की दृष्टि से देखते थे और साम्यवाद के प्रसार को अपने लिए खतरे की घंटी मानते थे । भविष्य में अपनी सुरक्षा और साम्यवाद के प्रसार हेतु सोवियत संघ पूर्वी यूरोप के देशों में अपना प्रभाव फैलाना चाहता था , वहाँ साम्यवादी शासन व्यवस्था स्थापित करवाने का इच्छुक था जबकि पश्चिमी यूरोप के देश सोवियत संघ के प्रभाव क्षेत्र को सीमित रखना चाहते थे ।  ( Political science 12th)

4. संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ द्वारा आपसी समझौतों का उल्लंघन दूसरे विश्व युद्ध के दौरान तो दोनों महाशक्तियाँ या दोनों गुट युद्ध में शत्रु राष्ट्रों को पराजित करने और युद्ध की समाप्ति के उद्देश्य से आपसी मित्रता का व्यवहार करते रहे परंतु जब युद्ध की समाप्ति निश्चित होने लगी तो दोनों गुटों ने अपने स्वार्थों को पूरा करने की इच्छा से आपस में हुए समझौतों का उल्लंघन करना आरंभ कर दिया जिसके कारण युद्ध की समाप्ति के बाद दोनों की शत्रुता खुलकर सामने आई और शीतयुद्ध एक प्रकार से आरंभ हो गया ।

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Q.2. शीतयुद्ध की प्रमुख घटनाओं की विवेचना कीजिए ।

Ans . शीतयुद्ध की प्रमुख घटनाएँ ( Main Events of Cold War ) – शीतयुद्ध के 40 वर्षों के काल में अनेक परिस्थितियाँ ऐसी आई जब दोनों महाशक्तियाँ सशस्त्र युद्ध के आरंभ होने की स्थिति में आई ।

बेशक वास्तविक रूप में तीसरा विश्वयुद्ध तो आरंभ नहीं हुआ परंतु इन घटनाओं ने सारे संसार में भय , अनिश्चय , आतंक , असुरक्षा और विनाश की आशंका के वातावरण को बनाए रखा ।  ( Political science 12th)

शीतयुद्ध की कुछ प्रमुख घटनाएँ निम्नलिखित हैं

1. चीन में साम्यवादी शासन की स्थापना– प्रथम अक्टूबर 1949 में चीन में साम्यवादी दल का शासन स्थापित हुआ और च्यांगकाई शेक की राष्ट्रवादी सरकार ने भागकर फार्मूसा में शरण ली । इससे सोवियत संघ को प्रोत्साहन मिला । यह साम्यवाद के प्रसार में बढ़ोतरी थी । इससे पश्चिमी गुट को झटका लगा । साम्यवादी चीनी सरकार ने संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता तथा सुरक्षा परिषद् की स्थाई सदस्यता का दावा किया । परंतु अमेरिकन गुट ने फार्मूसा में स्थित च्यांगकाई शेक की सरकार की मान्यता को ही बनाए रखा और साम्यवादी चीन को संयुक्त राष्ट्र का सदस्य भी नहीं बनने दिया । इससे अमेरिका और सोवियत संघ के संबंधों में कटुता गंभीर रूप से बढ़ी ।

2. कोरिया युद्ध – 1950 में उत्तर कोरिया की साम्यवादी सरकार ने दक्षिण कोरिया पर आक्रमण कर दिया । अमेरिका के प्रस्ताव पर सुरक्षा परिषद् ने उत्तर कोरिया को आक्रमणकारी घोषित किया और संयुक्त राष्ट्र के नाम पर अनेक देशों की सेनाओं ने दक्षिण कोरिया की सहायता की । वास्तव में यह युद्ध अमेरिका और सोवियत संघ के बीच था । संयुक्त राष्ट्र के नाम पर उसकी अमेरिकी सेना लड़ रही थी और उत्तर कोरिया के नाम पर चीनी सैनिक सोवियत संघ के हथियारों से लड़ रहे थे । यह युद्ध 1953 तक चला ।

3. वियतनाम में अमेरिकी हस्तक्षेप -1954 में अमेरिका ने वियतनाम के मामले में हस्तक्षेप किया । यह काफी लंबा चला और इसमें संयुक्त राज्य अमेरिका को काफी हानि का भी सामना करना पड़ा ।

4. हंगरी में सोवियत संघ का हस्तक्षेप -1956 में सोवियत संघ ने हंगरी में हस्तक्षेप किया जिसकी पश्चिमी गुटों के देशोंने कड़ी आलोचना की ।

5. यू – 2 विमान कांड- 1958 में खुश्चेव सोवियत संघ के प्रधानमंत्री बने । वे शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के समर्थक थे । सितंबर 1958 में उन्होंने अमेरिका की यात्रा की । आशा प्रकट की गई कि इसी प्रकार की सौहार्द्र यात्रा अमेरिकन राष्ट्रपति द्वारा की जाए ।

शीतयुद्ध को समाप्त करने के लिए चार बड़े देश के शासनाध्यक्षों का शिखर सम्मेलन मई 1960 में पेरिस में होना निश्चित हुआ । यह भी निश्चित हुआ कि अमेरिकन राष्ट्रपति शिखर सम्मेलन से ही सोवियत संघ की यात्रा करें । परंतु दुर्भाग्यवश शिखर सम्मेलन से पहले ही अमेरिका का एक जासूसी जहाज ( यू- 2 ) सोवियत संघ की सीमाओं की जासूसी करते हुए पकड़ा गया । इससे दोनों गुटों के बीच मित्रता के कदम उठाए जाने की बजाए कटुता और शत्रुता बढ़ी ।

6. क्यूबा की घटना ( Cuba Missile Episade ) —क्यूवा संयुक्त राज्य अमेरिका के निकट दक्षिण में एक टापू है । वहाँ 1958 में डॉ . फिडेल कास्त्रो ( Dr. Fidel Castro ) के नेतृत्व में साम्यवादी शासन स्थापित हुआ जो अब भी उसी के नेतृत्व में स्थित है । अमेरिका के बिल्कुल निकट साम्यवादी शासन का होना स्वाभाविक रूप से अमेरिका के लिए चिंता का विषय था । 1962 के आसपास सोवियत संघ ने क्यूबा में अपने सैनिक अड्डे स्थापित कर लिए ।

Political science 12th ch-1 Cold War Era in world politics

Q3. निःशस्त्रीकरण क्या है ? निःशस्त्रीकरण की क्या आवश्यकता है ? इसके लिए ” किए गए प्रयत्नों का उल्लेख करें ।

Ans . ( Political science 12th)  निःशस्त्रीकरण ( Disarmament ) – राज्यों में लगी शस्त्रों की होड़ विश्व शांति और • सुरक्षा को एक खतरा है । आज प्रत्येक राज्य परमाणु शक्ति के आधार पर सैन्य शस्त्रों का निर्माण करने पर विचार करता है ।

शस्त्रीकरण का कार्य अधिकतर राज्यों द्वारा अपने आर्थिक व सामाजिक विकास की आवश्यकता को अनदेखा करके भी किया जाता है । बड़ी शक्तियों के अतिरिक्त कुछ अन्य देशों ने भी परमाणु बम बना लिया है ।

बेशक प्रत्येक राज्य परमाणु शक्ति का प्रयोग शांति के लिए करने का दावा करता है , परंतु इस बात से मुँह नहीं मोड़ा जा सकता कि शस्त्रों की इस दौड़ में विभिन्न देशों में परस्पर अविश्वास तथा भय का वातावरण पैदा होता है और विश्व शांति तथा सुरक्षा का खतरा दिखाई देता है ।

इस बात को ध्यान में रखते हुए निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र नियंत्रण के लिए बहुत से प्रयत्न किए गए । निःशस्त्रीकरण का अर्थ ( Meaning of Disarmament ) — निःशस्त्रीकरण का शाब्दिक अर्थ तो सभी प्रकार के शस्त्रों के उत्पादन की समाप्ति है , परंतु इसका वास्तविक तथा व्यावहारिक अर्थ है विश्व शांति और सुरक्षा के लिए कुछ विशेष प्रकार के या सभी शस्त्रों के उत्पादन में कमी या समाप्ति करना ।

( Political science 12th) अर्थात् दो या दो से अधिक राज्यों द्वारा आपसी समझौते या स्वेच्छा से अपने शस्त्रों में कमी करना , उन्हें सीमित मात्रा में रखना अथवा उनके उत्पादन को समाप्त करने का कदम निःशस्त्रीकरण होता है ।

( Need for Disarmament ) – विश्व के दो विरोधी निःशस्त्रीकरण की आवश्यक युदों में बँट जाने से अंतर्राष्ट्रीय परिस्थिति इतनी विस्फोटक हो गई थी कि विश्वयुद्ध कभीभी छिड़ सकता था और यदि तीसरा युद्ध होता हो या हो जाए तो वह परमाणु युद्ध होगा और वह मानव जाति और मानव उपलब्धियों को पूर्णतः नष्ट कर देगा ।

संसार ने 1944 में हीरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बमों का विनाश देख लिया था और आज भी उनका प्रभाव वहाँ के लोगों पर है । यह महसूस किया गया कि यदि निःशस्त्रीकरण को लागू नहीं किया गया तो हम प्रलय की ओर जाएँगे । यह भी महसूस किया गया कि परमाणु शस्त्रों से सैन्य उद्देश्यों की पूर्ति नहीं हो सकती और परमाणु शस्त्रों से युद्ध कदापि नहीं लड़े जा सकते ।

परमाणु शस्त्रों का होना भय , आतंक , अविश्वास , अनिश्चय तथा खतरों में वृद्धि ही करता है । निःशस्त्रीकरण के लिए किए गए प्रयत्न ( Efforts Made for Disarmament ) – शस्त्रों की दौड़ के खतरे को महसूस किया जाना और उसकी समाप्ति की आवश्यकता कोई नई बात नहीं । प्रथम महायुद्ध से पहले भी कुछ शासकों ने व्यक्तिगत रूप से इसके लिए प्रयत्न किए थे ।

1899 में हुए पहले हेग सम्मेलन ( Hauge Conference ) में निःशस्त्रीकरण पर विचार किया गया और 1907 के दूसरे हेग सम्मेलन में सेना संबंधी खर्च को सीमित करने की अपील की गई । परंतु इस पर कोई प्रभावकारी अमल नहीं हुआ ।

( Political science 12th) 1919 में बनी राष्ट्र लीग ( League of Nations ) के चार्टर में निःशस्त्रीकरण की ओर ध्यान दिया गया और इस उद्देश्य के लिए एक स्थाई समिति की नियुक्ति की गई । परंतु इस समिति ने कोई आशाजनक कार्य नहीं किया ।

1932 में निःशस्त्रीकरण पर विचार करने के लिए जेनेवा सम्मेलन हुआ जिसमें 61 देशों ने भाग लिया था । इस सम्मेलन ने युद्ध में कुछ विशेष प्रकार के शस्त्रों के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाया । परंतु दूसरे विश्वयुद्ध तक फिर भी इस लक्ष्य की प्राप्ति की ओर कोई प्रभावकारी कदम नहीं उठ सका और दूसरे विश्व युद्ध में परमाणु बम का प्रयोग हुआ तथा यह युद्ध पहले महायुद्ध के मुकाबले में अधिक विनाशकारी साबित हुआ ।

1945 में संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के बाद निःशस्त्रीकरण के लिए प्रयत्न आरंभ हुए , क्योंकि यह बात सभी जानते थे कि सैन्य शस्त्रों का होना युद्ध को दावत देना है । 1946 में संयुक्त राष्ट्र ने एक अणुशक्ति आयोग ( Atomic Energy Commission ) की स्थापना की , जिसका उद्देश्य अणुशक्ति के अनुचित प्रयोग पर नियंत्रण रखना था ।

इस आयोग ने ऐसी योजना बनायी थी जो अणुशक्ति वाले देशों को इस बात के लिए राजी करे कि अणु शक्ति का प्रयोग युद्ध के लिए नहीं बल्कि शांति के लिए किया जाए । 1947 में अमेरिका तथा रूस के प्रस्तावों के आधार पर संयुक्त राष्ट्र ने एक परंपरागत शस्त्र आयोग ( Commission of Conventional Armament ) की स्थापना की जिसका उद्देश्य परंपरागत शास्त्रों में कमी और उन पर नियंत्रण रखने संबंधी योजना बनाना था । परंतु ये दोनों आयोग कोई विशेष सफलता प्राप्त नहीं कर सके ।

1952 में संयुक्त राष्ट्र ने पहले दोनों आयोगों के स्थान पर निःशस्त्रीकरण आयोग ( Disarmament Commission ) की स्थापना की । यह आयोग भी अपने उद्देश्य की प्राप्ति के कोई ठोस कदम न उठा सका । 1955 में एक जेनेवा शिखर सम्मेलन हुआ जिसमें रूस , अमेरिका , फ्रांस और इंग्लैंड के शासनाध्यक्षों ने भाग लिया और निःशस्त्रीकरण पर विचार – विमर्श किया ।

अमेरिका ने इसमें एक योजना प्रस्तुत की जिसे ‘ खुला आकाश योजना ‘ ( Open Sky Plan ) का नाम दिया जाता है । इसके अंतर्गत यह सुझाव दिया गया कि दोनों गुट एक – दूसरे के हवाई जहाजों को स्वतंत्रपूर्वक आने – जाने की आज्ञा दें ताकि वे देख सकें कि दूसरे देश में क्या सैनिक तैयरियाँ हो रही हैं । 

( Political science 12th) 1963 में सोवियत रूस , अमेरिका तथा इंग्लैंड के बीच एक परमाणु प्रतिबंध संधि हुई जिसके अनुसार यह निश्चित हुआ कि
1. कोई भी सदस्य राज्य वायुमंडल , अंतरिक्ष तथा पानी के अंदर कोई परमाणु परीक्षण नहीं करेगा ;
2. कोई भी सदस्य राज्य अपने भू – क्षेत्रीय समुद्र तथा समुद्र में कोई परमाणु परीक्षण नहीं करेगा ; तथा
3. कोई भी सदस्य राष्ट्र किसी अन्य राष्ट्र को परमाणु परीक्षण के लिए प्रोत्साहित नहीं करेगा ।

इस संधि का विश्व में स्वागत हुआ और बाद में बहुत से परमाणु देशों ने इस पर हस्ताक्षर करके इसे स्वीकार कर लिया । परमाणु 1969 में संयुक्त राष्ट्र की महासभा के आधार पर रूस , अमेरिका तथा इंग्लैंड ने अप्रसार संधि ( Nuclear Non – proliferation Treaty ) पर हस्ताक्षर किए ।

इस संधि की मुख्य बातें निम्नलिखित थीं :-
1. कोई भी राष्ट्र गैर – परमाणु अस्त्र राष्ट्र को परमाणु अस्त्र प्राप्त करने में सहयोग तथा सहायता नहीं देगा ।
2. परमाणु अस्त्र संपन्न राष्ट्र गैर – परमाणु राष्ट्रों को परमाणु शक्ति का किसी भी प्रकार ज्ञान तथा सामग्री उसी समय देंगे जबकि वह राष्ट्र उसका प्रयोग शांति के लिए करने का आश्वासन देगा ।
3. यदि कोई परमाणु आक्रमण की धमकी देता है अस्त्र संपन्न राष्ट्र किसी परमाणु अस्त्र विहीन राष्ट्र को युद्ध और तो अन्य परमाणु अस्त्र संपन्न राष्ट्र उसकी सहायता कर सकेंगे ।
4. परमाणु अस्त्र विहीन राष्ट्र परमाणु शक्ति का विकास कर सकते हैं ।
5. परमाणु अस्त्र विहीन राष्ट्रों को अपने परमाणु संस्थानों के निरीक्षण की अनुमति तथा सुविधा देनी होगी ।

निःशस्त्रीकरण की दिशा में अगला परमाणु महत्त्वपूर्ण कदम 1972 में उठा जबकि अमेरिकन राष्ट्रपति निक्सन ने रूस की यात्रा की । वहाँ दोनों देशों में सामरिक अस्त्र सीमा संधि ( Strategic Arms Limitation Treaty ) हुई । इस संधि के द्वारा दोनों देशों ने प्रक्षेपास्त्रों के प्रयोग पर सीमाएँ स्वीकार की । 1974 में एक अन्य समझौते द्वारा अमेरिका तथा सोवियत संघ में परमाणु शस्त्रों के उत्पादन को अगले 10 वर्षों तक सीमित रखने की सहमति हुई ।

( Political science 12th) 1979 में अमेरिका तथा रूस में एक और समझौता सामरिक शस्त्र सीमा संधि हुआ जो पाँच वर्ष के लिए किया गया था । इसमें प्रक्षेपास्त्रों पर और अधिक सीमाओं की व्यवस्था थी । परंतु अमेरिकन सीनेट ने इसे अनुमोदित नहीं किया और यह संधि रद्द हो गई ।

इस संधि की असफलता के बाद 1981 में अमेरिकन राष्ट्रपति रीगन ने निःशस्त्रीकरण के संबंध में अपनी एक योजना रखी जो रूस को स्वीकार नहीं थी और 1982 में रूस ने अपनी योजना रखी जो अमेरिका को स्वीकार नहीं थी । इसी प्रकार 1983 में जेनेवा में हुई स्टार्ट वार्ता ( START Negotiations ) तथा 1985 में हुई जेनेवा वार्ता ( Geneva Talks ) भी दोनों गुटों में निःशस्त्रीकरण के संबंध में लाभकारी साबित नहीं हुई ।

1985 में राष्ट्रों का एक सम्मेलन नई दिल्ली में हुआ जिसमें निःशस्त्रीकरण की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए सभी देशों से परमाणु शस्त्रों की दौड़ बंद करने की अपील की गई । इसी वर्ष अमेरिका और रूस के राष्ट्रपतियों ने यह स्वीकार किया कि विश्व शांति को बनाए।  ( Political science 12th)

FAQ

शीत युद्ध क्या हैं?

Ans . ( Political science 12th) शीतयुद्ध वह स्थिति होती है जिसमें वातावरण तनावपूर्ण होता है , परन्तु युद्ध नहीं होता । दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति से ही शीतयुद्ध की शुरूआत हुई । इस अवधि में पूँजीवादी देशों और साम्यवादी देशों में आपसी शत्रुता और तनाव चलता रहा और वे एक – दूसरे को संदेह की दृष्टि से देखते रहे ।

शीत युद्ध किन-किन देशों के बीच खटित हुई?

शीत युद्ध अमेरिका और सोवियत संघ के बीच हुई |