Jac Board Class 12 ch 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन best notes & question answer 

पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन
पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन
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Jac Board Class 12 ch 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन best notes & question answer 

विषयराजनीतिक विज्ञान
कक्षा12वीं
अध्याय8
अध्याय का नामपर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन
फैकल्टीआर्ट्स / Arts
बोर्डझारखंड
उपलब्धMcq / अति महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन

पाठ की मुख्य बातें


आज वायु प्रदूषण है , कोलाहल का प्रदूषण है और जल का प्रदूषण है । आज नदियाँ और समुद्र इस प्रकार दूषित हो गए हैं कि पशुओं और जीव – जंतुओं के लिए भी खतरा बनते जा रहे हैं ।

पीने के लिए जल का अभाव दिखाई देने लगा है और श्वास लेने के लिए शुद्ध हवा भी कठिनाई से मिलती है । यह प्रदूषण मैदानी इलाकों तक ही सीमित नहीं , पहाड़ों पर भी गंदगी और कचरे के ढेर दिखाई देने लगे हैं जिसने पहाड़ों की मनोरम छटा को विकृत कर दिया है ।

पर्यावरण प्रदूषण इतना बढ़ गया है कि इस संतति के लिए भी खतरा बनता जा रहा है , भावी संतति की तो बात हा दूर का है । इसलिए आज पर्यावरण को बचाए रखने की बहुत बड़ी समस्या मानव जाति के सामने खड़ी है और सभी देशों में इसके समाधान के लिए प्रयत्न किए जा रहे हैं ।

पर्यावरण के संरक्षण के सुझाव ( Suggestions for the Conservation of Environment ) — आज लगभग सभी देशों ने स्वावलम्बनात्मक या पोषणकारी विकास ( Sustainable Development ) की अवधारणा को अपने राजनीतिक मुद्दों में सम्मिलित कर लिया है और संयुक्त राष्ट्र संघ तथा अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ पर्यावरण के संरक्षण में प्रयत्नशील हो चुकी हैं । पर्यावरण के संरक्षण के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जा रहे हैं

1. गाँधी जी के विचार ( Views of Gandhiji ) — गाँधी जी के कुछ विचार ऐसे हैं जो पर्यावरण के संरक्षण में बड़े उपयोगी सिद्ध होते हैं । उन्होंने बड़े – बड़े उद्योगों का विरोध किया था और कुटीर तथा छोटे उद्योगों को प्रोत्साहन देने पर जोर दिया है । कुटीर उद्योगों के लगाने से प्रदूषण संबंधी वे समस्याएँ पैदा नहीं होतीं जो बड़े – बड़े उद्योगों के कारण होती हैं । इसके साथ ही गाँधी जी ने यह सुझाव दिया था कि परिवार के प्रत्येक सदस्य को रोजी के लिए परिश्रम करना चाहिए और जहाँ तक संभव हो , अपने खाने – पीने की वस्तुएँ स्वयं ही पैदा करनी चाहिए ।

2. जनसंख्या पर नियंत्रण ( Population Control ) पर्यावरण तथा विकास आदि का सीधा संबंध जनसंख्या से भी है । बढ़ती हुई जनसंख्या भी पर्यावरण के दूषित होने का एक बहुत बड़ा कारण है । यदि जनसंख्या पर नियंत्रण पा लिया जाए और इसकी वृद्धि कम हो जाए तो प्राकृतिक संसाधनों की खपत कम होगी और धरती की धारक शक्ति पर दबाव कम हो जाएगा । परिवहन वाहन , कल – कारखाने , खेती – वाड़ी सभी कुछ तो जनसंख्या के अनुसार घटता – बढ़ता है । इसलिए आवश्यक है कि छोटे परिवारों को प्रोत्साहन दिया जाए । अधिक जनसंख्या के कारण गरीबी बढ़ती है । गंदी बस्तियाँ बढ़ती हैं पानी और खाद्यान्नों की कमी महसूस होती है और इसका पर्यावरण को प्रदूषित बनाने में हाथ होता है । यदि जनसंख्या संतुलित मात्रा में बढ़ेगी तो विकास भी संतुलित मात्रा में ही होगा और पर्यावरण का संतुलन बना रहेगा ।

3. आवश्यकताओं में कमी करना ( To Minimise  Wants ) — लोगों को अपनी आवश्यकताओं में कमी करनी चाहिए । यह तभी संभव है जब व्यक्ति अपनी इच्छाओं को फैलने न दे , उन्हें अपनी आर्थिक दशा के अनुरूप रखे और कृत्रिम जीवन स्तर की ओर आकर्षित न हो । पूर्वी विचारधारा के अनुसार ‘ सादा जीवन तथा उच्च विचार ‘ ( Simple living and high thinking ) का आदर्श अपनाया जाना चाहिए ।

व्यक्ति की वास्तविक आवश्यकताएँ कम होती हैं और कृत्रिम आवश्यकताएँ अधिक होती हैं । यदि उत्पादन आवश्यकताओं के अनुसार हो तो पर्यावरण के संरक्षण की समस्या काफी मात्रा में कम हो जाती है । भौतिकवादी दृष्टिकोण के बजाय आध्यात्मिक दृष्टिकोण को अपनाने से मन और आत्मा की शुद्धि में व्यक्ति लगने लगता है औ कृत्रिम इच्छाओं तथा ऐश्वर्यपूर्ण जीवन का त्याग करने लगता है । ऐसे व्यक्तियों के समाज में सभी वस्तुएँ प्रचुर मात्रा में मिल जाती हैं ।

4. वन संरक्षण ( Conservation of Forests ) प्रत्येक समाज में वनों का होना आवश्यक है । अनुमान लगाया जाता है कि भूमि के एक – तिहाई भाग में वन या जंगल होने चाहिए । इनसे प्राकृतिक सौंदर्य व्यक्ति के जीवन को आनंदमय रखता है और इसके साथ ही नदियों व झीलों का बहाव ठीक रहता है , देश में बाढ़ की संभावनाएँ कम हो जाती हैं , भूमि बंजर नहीं होने पाती । ईंधन के लिए वन का अंधाधुंध प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए ।

आज पर्यावरण का संकट विश्वव्यापी संकट है और इसने विश्व की राजनीति को भी प्रभावित किया है तथा अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं और संसार के नेताओं का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है । मानव समाज तथा विश्व का भविष्य और उसका अस्तित्व भी पर्यावरण से जुड़ा है । 

पर्यावरण के प्रदूषण के साथ प्राकृतिक साधनों के भण्डार समाप्त होते जा रहे हैं और यदि इनकी समाप्ति तथा पर्यावरण की क्षति इसी गति से चलती रही तो आने वाली संतति के लिए कुछ भी न बचेगा यहाँ तक कि अगली संतति को पीने का शुद्ध जल , सांस लेने को शुद्ध हवा भी न मिलेगी इसकी कठिनाई से तो वर्तमान सन्तति भी परेशान है । 

पर्यावरण के प्रदूषण ने भूमि की उत्पादकता शक्ति को भी कम किया है और उसमें जहरीले तत्वों का भी समावेश किया है जिसके कारण खाद्य उत्पाद न तो पौष्टिक रहे हैं और न ही खाने योग्य हैं । पर्यावरण विश्व की साझी संपदा है जो मानव जीवन का आधार है । 

इसकी क्षति से मानव जीवन की क्षति जुड़ी हुई है । आज सारे संसार में इन प्रश्नों पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है कि साझी संपदा को कैसे बचाया जाए । अतः पर्यावरण संरक्षण के उपाय तेजी से किए जा रहे हैं ।

वस्तुतः पानी में नमक की सान्द्रता के बढ़ जाने से पदावार कम हो गई । अनक के पश्चात् इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता है । 

very short answer | अति लघु उत्तरीय

Q. 1. पर्यावरण की समस्याओं के अध्ययन के लिए क्या किया गया है ? 

Ans . 

1. संयुक्त राष्ट्र संघ पर्यावरण कार्यक्रम ( United Nations Environmen Programme – UNEP ) सहित अनेक अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं सम्मेलन कराये । 

2. इस विषय पर अध्ययन को बढ़ावा देना शुरू किया गया । इस प्रयास का उद्देश्य पर्यावर की समस्याओं पर अधिक कारगर और सुलझी हुई पहलकदमियों की शुरुआत करना था। 

Q. 2. पृथ्वी सम्मेलन या रियो सम्मेलन क्या है ? 

Ans . 

1. 1992 में संयुक्त राष्ट्र संघ का पर्यावरण और विकास के मुद्दे पर केन्द्रित सम्मेलन ब्राजील के रियो डी जनेरियो में हुआ । इसे पृथ्वी सम्मेलन ( Earth Summit ) कहा जाता है । 

2. वैश्विक राजनीति के क्षेत्र में पर्यावरण को लेकर बढ़ते सरोकारों को इस सम्मेलन में एक ठोस रूप मिला ।

Q.3 . टिकाऊ विकास का तरीका क्या है ? 

Ans . 

1. 1992 के रियो सम्मेलन में यह सहमति बनी कि आर्थिक वृद्धि से पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुँचना चाहिए । इसे टिकाऊ विकास का तरीका कहा गया ।

 2. परंतु समस्या यह थी कि ‘ टिकाऊ विकास ‘ का क्रियान्वयन किस प्रकार किया जाए , क्योंकि इस सम्मेलन ‘ एजेंडा -21 ‘ का झुकाव पर्यावरण संरक्षण को सुनिश्चित करने के बजाय आर्थिक वृद्धि की ओर था । 

Q. 4. वैश्विक सम्पदा या मानवता की साझी विरासत से आप क्या समझते हैं ? 

Ans . 

1. विश्व के कुछ हिस्से और क्षेत्र किसी एक देश के संप्रभु क्षेत्राधिकार से बाहर होते हैं । इसलिए उनका प्रबंधन साझे तौर पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा किया जाता है । इन्हें वैश्विक सम्पदा या मानवता की साझी विरासत कहा जाता है । 

2. इसके अंतर्गत पृथ्वी का वायुमंडल , अंटार्कटिका , समुद्री सतह और बाहरी अंतरिक्ष शामिल हैं । इस सम्पदा की सुरक्षा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा की जाती है। 

Q. 5. पृथ्वी सम्मेलन या रियो सम्मेलन क्या है ?? 

Ans . 

1. अंटार्कटिक संधि ( 1959 ) 

2. मांट्रियल न्यायाचार अथवा प्रोटोकॉल ( 1987 ) 

3. अंटार्कटिक पर्यावरणीय न्यायाचार अथवा प्रोटोकॉल ( 1991 ) 

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लघु उत्तरीय प्रश्न ( SHORT ANSWER TYPE QUESTIONS ) 

1. प्राकृतिक वनों से क्या लाभ है ? वैश्विक राजनीति में इनसे संबंधित चिंतायें क्या हैं ? 

Ans . 

प्राकृतिक वनों से लाभ – 

1. ये जलवायु को संतुलित करने में सहायता करते हैं । 2. इनके जल चक्र भी संतुलित रहता है । 

3. वनों में जैव विविधता का भंडार भरा पड़ा है । संबंधित चिंतायें-

4. इनसे इमारती लकड़ी और अन्य बहुमूल्य लकड़ियाँ मिलती हैं । 

Q. 2. ऑवर कॉमन फ्यूचर रिपोर्ट ( 1987 ) की मुख्य बातें क्या हैं ? 

Ans . ऑवर कॉमन फ्यूचर रिपोर्ट ( 1987 ) की मुख्य बातें- 

1. रिपोर्ट में चेताया गया था कि आर्थिक विकास के मौजूदा तरीके स्थायी नहीं रहेंगे । 

2. विश्व के दक्षिणी देशों में औद्योगिक विकास का माँग अधिक तेज है और रिपोर्ट में इसी हवाले से चेतावनी दी गई थी । 

3. रियो सम्मेलन में यह बात खुलकर सामने आयी कि विश्व के धनी और विकसित देशों तथा गरीब और विकासशील देशों का पर्यावरण के संबंध में अलग – अलग दृष्टिकोण है । 

4. दक्षिणी देश आर्थिक विकास और पर्यावरण प्रबंधन के आपसी रिश्ते को सुलझाने के लिए ज्या चिंतित थे । 

Q. 3. अंटार्कटिका पर किसका स्वामित्व है ? 

Ans . 

1. अंटार्कटिक विश्व का सबसे सुदूर महादेश है । इसका इलाका 1 करोड़ 40 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है । 

2. प्रश्न उठता है कि इस पर किसका स्वामित्व है । इस संबंध में दो दावे किये जाते हैं ।

 3. कुछ देश जैसे – ब्रिटेन , अर्जेन्टाइना , चिली , नार्वे , फ्रांस , आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ने अंटार्कटिक क्षेत्र पर अपने संप्रभु अधिकार का वैधानिक दावा किया है । 

4. अन्य अधिकांश देशों ने इससे उल्टा रुख अपनाया कि अंटार्कटिक प्रदेश विश्व की साझी संपदा है और यह किसी भी क्षेत्राधिकार में शामिल नहीं है । इस मतभेद के रहते हुए अंटार्कटिक के पर्यावरण और परिस्थिति तंत्र की सुरक्षा के नियम बनाये गये और उन्हें अपनाया गया । अंटार्कटिक और पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्र पर्यावरण सुरक्षा के विशेष क्षेत्रीय नियमों के अंतर्गत आते हैं । 

Q.4.1992 के जलवायु के परिवर्तन से संबंधित संयुक्त राष्ट्र संघ के नियमाचार धारायें बताइए । ( United Nations Framework Convention on Climate Change of 1992 ) 

1. इस संधि को स्वीकार करने वाले देश अपनी क्षमता के अनुसार , पर्यावरण के अपक्षय में अपनी हिस्सेदारी के आधार पर साझी परंतु पृथक् – पृथक् जिम्मेदारी निभाते हुए पर्यावरण की सुरक्षा के प्रयत्न करेंगे । 

2. इस नियमाचार को स्वीकार करने वाले देश इस बात पर सहमत थे कि ऐतिहासिक रूप से भी और मौजूदा समय में भी ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में सबसे अधिक हिस्सा विकसित देशों में ग्रीन हाउस गैसों का है । 

3. यह बात भी स्वीकार की गई कि विकासशील देशों के प्रति व्यक्ति उत्सर्जन अपेक्षाकृत कम है । इसलिए भारत , चीन और अन्य विकासशील देशों को क्योटो प्रोटोकॉल की वाध्यताओं से अलग रखा गया है । 

4. 1992 में प्रोटोकॉल समझौते के लिए कुछ सिद्धांत निर्धारित किये गये थे और सिद्धांत की इस रूपरेखा अर्थात् जलवायु के परिवर्तन से संबंधित संयुक्त राष्ट्र संघ के नियमाचार पर सहमति प्रकट करते हुए हस्ताक्षर हुए थे । 

Q5. क्योटो प्रोटोकॉल पर एक √ संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए । 

Ans . क्योटो प्रोटोकॉल— 

1. क्योटो प्रोटोकॉल एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है । 

2. इसके अंतर्गत औद्योगिक देशों के लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लक्ष्य निर्धारित किये गये हैं । 

3. प्रोटोकॉल में यह भी माना गया है कि कार्बन डाइऑक्साइड , मीथेन और हाइड्रो – फ्लोरो कार्बन जैसी कुछ गैसों के कारण वैश्विक तापवृद्धि होती है । 

4. यह भी कहा गया है कि वैश्विक तापवृद्धि की परिघटना में विश्व का तापमान बढ़ता है और पृथ्वी के जीवन के लिए खतरनाक हो सकती है । 

Q6. पावन वन प्रांतर से आप क्या समझते हैं ? इसका क्या महत्त्व है ?  

Ans . 

1. प्राचीन भारत में प्रकृति को देवता के रूप में स्वीकार किया गया है और उसकी सुरक्षा की प्रथा थी । इस प्रथा के सुंदर उदाहरण पावन वन प्रांतर हैं ।

 2. कुछ वनों को काटा नहीं जाता था । इन स्थानों पर देवता अथवा किसी पुण्यात्मा को माना जाता है । इसे ही पावन – प्रांतर या देवस्थान कहा गया है । 

3. इन पावन वन प्रांतरों का राष्ट्रीय विस्तार है । इसकी पुष्टि विभिन्न भाषाओं के शब्दों से होती है । इन देव स्थानों को राजस्थान में बानी केकड़ी और औरान , झारखंड में जहेरा थाव और सरन , मेघालय में लिंगदोह , उत्तराखंड में धान या देवभूमि आदि नामों से जाना जाता है । 

Q. 7. संयुक्त राष्ट्र संघ के जलवायु परिवर्तन से संबंधित नियमाचार ( United Nations Framework Convention on Climate Change ) में भारत कहाँ तक अनुकूल है ? 

Ans .

 संयुक्त राष्ट्र संघ की जलवायु परिवर्तन से संबंधित नियमाचार में भारत की अनुकूलता :- 

1. भारत संयुक्त राष्ट्र संघ की जलवायु परिवर्तन से संबंधित नियमाचार के अनुरूप पर्यावरण से जुड़े अंतर्राष्ट्रीय मसलों में अधिकांश तथा उत्तरदायित्व का तर्क रखता है ।

 2. इस तर्क के अनुसार ग्रीन हाउस गैसों के रिसाव की जवाबदेही अधिकांशतया विकसित देशों की है । 

3. हाल में संयुक्त राष्ट्र संघ के इस नियमाचार के अंतर्गत यह बात उठी कि तेजी से औद्योगीकरण होते देश ( ब्राजील , चीन और भारत ) नियमाचार की बाध्यताओं का पालन करते हुए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करें । 

4. भारत इसके खिलाफ है । उसका कहना है कि यह बात इस नियमाचार की मूल भावना के विरुद्ध है । क्योंकि भारत का उत्सर्जन दर ( 2030 में लगभग 1.6 टन प्रति व्यक्ति ) विश्व के वर्तमान उत्सर्जन दर ( 2000 में 3.8 टन प्रति व्यक्ति ) से बहुत कम है । 

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ( LONG ANSWER TYPE QUESTIONS ) 

Q1.विश्व की राजनीति में पर्यावरण की क्या भूमिका है ? 

विद्यमान विश्व की राजनीति में पर्यावरण से संबंधित कई प्रश्न वड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान बनाए हुए हैं । 1960 से पहले पर्यावरण को राजनीति के विषय क्षेत्र से बाहर की बात माना जाता था । 

परंतु जब इसे विश्वव्यापी गंभीर समस्याओं में गिना जाता है और पर्यावरण की क्षति की सुरक्षा की माँग अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी प्रबल है । साधारण व्यक्ति भी यह सोचता है कि पर्यावरण का विषय तो किसी समाज की राजनीति का विषय भी नहीं बनता , फिर इसे विश्व की राजनीति में क्यों घसीटा जा रहा है । 

परंतु वास्तविक स्थिति यह है कि आज पर्यावरण की रक्षा से संबंधित मामले विश्व राजनीति में क्यों घसीटा जा रहा है । परंतु वास्तविक स्थिति यह है कि आज पर्यावरण की रक्षा से संबंधित मामले विश्व राजनीति के गंभीर मामले बने हुए । 

 राज्य का दायित्व अपने नागरिकों की बाह्य आक्रमणों तथा आतंरिक संकटों से ही रक्षा करना नहीं बल्कि आज के कल्याणकारी राज्य के युग में अपने नागरिकों के सर्वोत्तम विकास तथा कल्याण के कदम उठाना भी है । राज्य का दायित्व अपने नागरिकों को भूख , बीमारी , बेकारी , वेरोजगारी आदि से सुरक्षा प्रदान करना भी है । 

Q2. भारत ने पर्यावरण संरक्षण के लिए क्या कदम उठाए हैं ? पर्यावरण के संरक्षण में भारत की भूमिका की व्याख्या कीजिए । 

Ans . पर्यावरण संरक्षण में भारत की भूमिका ( India’s Role in Conservation of • प्रस्तावों का पालन करता आया है । 

परंतु वह सभी मुद्दों पर खुले मन से तथा पक्षपात रहित ने संयुक्त राष्ट्र की सभी गतिविधियों में सक्रिय भाग लिया है और उसके कानूनों , नियमों तथा Environment ) – भारत आरंभ से ही संयुक्त राष्ट्र का सदस्य है और उसका समर्थक है । भारत दृष्टिकोण अपना कर किसी भी घटना तथा विरोध का समर्थन या विरोध भी करता है जैसे कि पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर अपनाया है । भारत ने परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि को स्वीकार नहीं किया है । 

यही दृष्टिकोण भारत ने पर्यावरण की रक्षा हेतु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पास किए गए प्रस्तावों तथा सुझावों को भारत ने माना है , परंतु कुछ प्रस्तावों का आंशिक रूप से विरोध भी किया है जो कि उसके अनुसार पर थोपे जाने के रूप में देखे जाते हैं । विकासशील देशों के हित में नहीं समझे जाते तथा पश्चिमी विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों भारत ने पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में निम्नलिखित भूमिका निभाई :- 

1. भारत की संस्कृति प्राचीन समय से ही पर्यावरण को बनाए रखने और प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने पर जोर देने वाली है । भारत के लगभग सभी भागों में धार्मिक दृष्टिकोण से वनों की कटाई को अच्छा नहीं समझा जाता । 

2. भारत ने सन् 2002 में क्योटो संधि पर हस्ताक्षर किए और पर्यावरण की रक्षा हेतु अपना सहयोग देने तथा दायित्व निभाने की वचनबद्धता दी । 

3. भारत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण के संरक्षण के लिस किए जा रहे प्रयासों में अपना योगदान करता है । 

4. भारत ने अपनी राष्ट्रीय आटो – फ्यूल नीति ( National Auto Fuel Policy ) में वाहनों के लिए स्वच्छ ईंधन ( C.N.G ) अनिवार्य कर दिया है । कई नगरों में स्वच्छ ईंधन से चलने वाले वाहन ही चलाए जा सकते हैं । वाहनों के लिए प्रदूषण नियंत्रण पत्र ( P.U.C. ) रखना अनिवार्य कर दिया गया है । 

5. सन् 2001 में ऊर्जा – संरक्षण कानून बनाया गया और ऊर्जा के सही प्रयोग तथा प्रदूषण की रोकथाम के नियम बनाए गए । 

6. भारत ने सन् 2003 के बिजली कानून के अंतर्गत पुनर्नवीकृत ऊर्जा ( Renewable Energy ) के प्रयोग को प्रोत्साहित करने के कदम उठाए हैं । 

7. भारत में स्वच्छ ईंधन , प्राकृतिक गैस तथा प्रदूषण रहित प्रौद्योगिकी तथा उद्योगों पर जोर दिया जा रहा है। 

8. भारत में बायो डीजल ( bio – diesel ) बनाने की योजना आरंभ कर दी है और आशा है कि 2010-2011 तक भारत में यह बनने लगेगा और प्रदूषण में कमी आएगी । 

9. संसार के Renewable Energy के सबसे बड़े कार्यक्रमों में एक भारत में चल रहा है जो इस बात का साक्षी है कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति भारत गंभीर है और ठोस कदम उठा रहा है । 

10. भारत ने सार्क सम्मेलनों में इस मुद्दे को उठाया है और संगठन के सभी सदस्य देशों से इस संबंध में आपसी सहयोग करने और एक सामान्य नीति निश्चित करने पर जोर दिया है । 

11. भारत में सभी राज्यों में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड स्थापित किए गए हैं जो सभी औद्योगिक गतिविधियों पर निगाह रखते हैं कि कोई उद्योग प्रदूषण तो नहीं फैला रहा । 

Q3 मूलवासी से क्या अभिप्राय है ? विश्व राजनीति में इनके अधिकारों के संबंध बताये। 

Ans . मूलवासियों का अर्थ ( Meaning of Indegeneous People ) – लगभग सभी देशों में जनसंख्या का कुछ भाग मूलवासियों का है । मूलवासियों के अधिकारों का मुद्दा इनके अधिकार मिलने चाहिए । इनके अधिकार क्या है , इन पर तो अभी एकमत नहीं । 

विश्व की राजनीति में सम्मिलित हो गया है और इस बात पर काफी विचार भी हुआ है कि इन्हें मानवाधिकारों की धारणा के युग में जबकि एक साधारण व्यक्ति के , एक मानव होने के नाते अधिकार की बात कही जाती है , तो उन व्यक्तियों के अधिकारों की माँग का महत्त्व स्वयंमेव बढ़ जाता है जो किसी देश के मूल निवासी और एक प्रकार से उस क्षेत्र के मूल स्वामी समझे जाते हैं । मूलवासी किसी देश में ऐसे लोगों को कहा जाता है जो किसी देश में बहुत पहले से रहते आए थे , 

परंतु बाद में दूसरे देश के और उन्हें जंगलों आदि में शरण लेने तथा वहाँ बसने पर बाध्य कर दिया । जंगलों या पर्वतीय क्षेत्रों में धकेले गए लोगों ने आकर वहाँ अपना अधिकार कर लिया क इन मूलवासियों ने अपनी भाषा , संस्कृति और रीति – रिवाजों ने अलग रहने के कारण ये लोग आधुनिक सभ्यता और के अनुसार ही अपना जीवन व्यतीत करते रहे । 

मुख्य जनसंख्या से संस्कृति के प्रभाव से अछूते रहे और अपने तौर – तरीकों 1982 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने मूलवासियों को परिभाषित करते हुए कहा है कि मूलवासी ऐसे लोगों के वंशज हैं जो किसी देश में काफी लम्बे समय से रहते चले आ रहे थे । 

फिर किसी दूसरी संस्कृति तथा वर्तमान संस्थाओं के अनुरूप जीवन व्यतीत करने की बजाय अपनी संस्कृति , अपनी परंपराओं , अपने रीति – रिवाजों तथा अपनी विशिष्ट सामाजिक आर्थिक जीवन शैली को अपनाए हुए हैं । तथा कटाई इतनामें स्थान दिया गया है । 

FAQ
एंटी बैलेस्टिक मिसाइल संधि(ABM) क्या है

एंटी बैलेस्टिक मिसाइल संधि:- यह संधि 1972 में हुई थी । इसके अंतर्गत अमेरिका और सोवियत संघ को बैलेस्टिक मिसाइलों को रक्षा कवच के रूप में प्रयोग करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था

क्योटो प्रोटोकॉल क्या है

क्योटो प्रोटोकॉल:– 1997 मैं क्यूटो प्रोटोकॉल पर भारत सहित राष्ट्रीय के हस्ताक्षर हुए। इसमें वैश्विक ताप वृद्धि पर काबू रखने के लिए ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन को कम करने के संबंध में दिशानिर्देश बताए गए हैं।