Sidhu Kahnu biography in hindi: सिद्धू-कान्हू हूल दिवस,सिद्धू कानू पर निबंध,सिद्धू कानू किस विद्रोह के नेता थे,सिद्धू कानू का जीवन परिचय,सिद्धू कानू का मृत्यु कब हुआ, सिद्धू कानू चांद-भैरव का जन्म कहां हुआ था,सिद्धू कानू का जन्म कब हुआ था|
आज हम अपने इस आर्टिकल में आपको धनबाद से जुड़ी ही एक खास बात बताने जा रहे है झारखंड में हुए संथाल विद्रोह के जनक और नायक सिद्धू कान्हूं के बारे में बताने जा रहे है कि किस तरह से इन्होंने इसे विद्रोह में अपना योगदान दिया था ।
झारखंड में ऐसे बहुत से क्रांतिकारी थे लेकिन उन क्रांतिकारियों के बारे में झारखंड के लोगो को काम ही जानकारी पता है| बहुत से परिवारों ने अपने वीर पुत्रो को खोया है आज हम अपनी इस आर्टिकल में आपको इस जैसे ही एक परिवार के चार भाइयों के बारे के बताने जा रहे है कि किस तरह से उन्होंने संथाल विद्रोह में अपना योगदान दिया था ।
० 1857 में झारखंड में जो संथाल विद्रोह हुआ था उसमें सिद्धू कान्हू और उनके भाइयों का बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है हम अपने इस आर्टिकल में आपको इन्हीं भाईयो के बारे में बताएंगे कि किस तरह से इन्होंने अंग्रेजो को झारखंड से भगाया था और अंग्रेजो कि सारी नीतियों को विफल भी किया था ।
इन चारों भाइयों ने मिलकर संथाल विद्रोह को सफल बनाया था इस विद्रोह के होने का सबसे प्रमुख कारण है ब्रिटिश सरकार , जमींदार, ठेकेदार और बड़े व्यवसाय ने मिलकर आदि वाशियो की जमीन को गेर कानूनी तरीके से हड़प रहे थे अपने कब्जे में ले रहे थे इसलिए यह जरूरी था कि संथाल विद्रोह किया जाए।
सिद्धू कान्हू का जन्म और परिवार | Birth and family of Sidhu Kanhu
सिद्धू कान्हू जी का पूरा नाम सिद्धू मुर्मू है और इनका जन्म झारखंड राज्य में संथाल परगना प्रमंडल के साहेबगंज जिले में बरहेट प्रखंड भोगनाडीह नामक गांव एक संथाल आदिवासी परिवार में हुआ था और साथ ही इनके जन्म की तारीख 1815 ईस्वी में हुआ था सिद्धू कानू पूरे 6 भाई बहन थे जिसमें से सिद्दू कान्हू घर के सबसे बड़े बेटे थे बाकी के दो भाई चांद और भैरव थे चांद का जन्म 1825 ईसवी में हुआ था और भैरव को जन्म 1835 ईसवी में हुआ था इसके साथ ही सिद्धू कान्हू की दो बहने भी थी।

जिसमें से पहले बहन का नाम फूलों मुर्मू था और दूसरी बहन का नाम झनों मुर्मू था सिद्धू कान्हू के पिता का नाम चुन्नी मांझी था जो कि आंदोलन के दौरान शहीद हो गए थे इसके साथ ही सिद्धू कान्हू की पत्नी का नाम सुमी मुर्मू था ये अपने परिवार के साथ काफी खुश रहते है चारों भाई आपस में एकदुसरे के साथ मिलजुलकर रहते थे और इनकी पत्नी भी इनसे काफी खुश रहती थी ।
सिद्धू का पूरा नाम | सिद्धू मुर्मू |
कान्हू का पूरा नाम | कान्हू मुर्मू |
सिद्धू मुर्मू का जन्म | सन् 1815 ईस्वी में |
कान्हू मुर्मू का जन्म | सन् 1820 ईसवी में |
सिद्धू मुर्मू का जन्म स्थान | साहेबगंज जिला बरहेट प्रखंड के भोगनाडीह नामक गांव में |
सिद्धू मुर्मू का उम्र | 40 साल |
सिद्धू मुर्मू के पिता का नाम | चुन्नी मांझी |
सिद्धू मुर्मू के भाई का नाम | कान्हू, चांद और भैरव |
सिद्धू मुर्मू की बहन का नाम | फूलों मुर्मू और झानों मुर्मू |
सिद्धू मुर्मू कि पत्नी का नाम | सुमी मुर्मू |
सिद्धू मुर्मू की मृत्यु, पुण्यतिथि | अगस्त 1855 |
भारत में अंग्रेजों का प्रवेश किस प्रकार हुआ | How did the British enter India
भारत में अंग्रेजों ने बहुत सालों तक साषण किया है और यहां के व्यापार को बाहर के देशों में ट्रांसफर कराया है अगर सभी ने इतिहास पढ़ा है तो उन्हें यह जानकारी होगी कि भारत में सबसे पहली क्रांति की शुरुआत 1857 से शुरू हुई थी 1857 की क्रांति लगभग पूरे भारत में देखने को मिली थी हर राज्य के लोग ने इस आंदोलन में भाग लिया अंग्रेजों को भारत से भगाने में अपना योगदान दिया |
जिसमें से झारखंड का भी नाम आता है यहां पर भी सन् 1857 में बहुत से क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध, अंग्रेज के अत्याचार के विरुद्ध, उनके व्यवहार के विरुद्ध संथाल विद्रोह शुरू किया था अंग्रेज चाहते थे कि वे भारत पर अपना आधिपत्य स्थापित करते रहना चाहते थे इसीलिए अंग्रेज झारखंड में बंगाल से सटे रास्ते कोल्हान प्रमंडल के सिंहभूम के रास्ते प्रवेश किया और धीरे-धीरे झारखंड पर अपना अधिकार जमाना शुरू कर दिया था।
संथाल विद्रोह | Santhal Rebellion

सिद्धू कान्हू ने 1855-56 ब्रिटिश सत्ता साहूकार ,व्यापारियों व जमींदारों के अत्याचार के खिलाफ एक विद्रोह की शुरुआत की जिसे संथाल विद्रोह या हूंल आंदोलन के नाम से जाना जाता है संथाल विद्रोह का नारा था ” करो या मरो अंग्रेज हमारी मिट्टी छोड़ो ” सिद्धू ने अपनी देवी शक्ति का हवाला देते हुए सभी मंझियो को साल की टहनी भेजकर संथाल हूल में होने के लिए मंत्रालय में भेजा 30 जून 1855 को भेगनादिह में संथाली आदिवासी सभा हुई |
जिसमें 400 ग्रामों के 50,000 संथाल एकत्रीकरण हुए जिसमें सिद्धू को राजा , कान्हू को मंत्री ,चांद को मंत्री और भैरव को सेनापति चुना गया संथाल विद्रोह भोगनाडीह से शुरू हुआ जिसमें संथाल एरो धनुष से लेश अपने शत्रु पर टूट पड़े जबकि अंग्रेज इसका नेतृत्व कर रहे थे।
जनरल लार्ड में जो आधुनिक हथियार और गोला डायनामाइट से परिपूर्ण थे इस योजना में महेश लाल ने प्रताप नारायण नामक दरोगा की हत्या कर दी गई इसे अंग्रेजी में खोफ मच गया था संथलो के भय से अंग्रेजों ने बचने के नियर पकोड़ा टावर का निर्माण किया था।
सिद्धू कान्हू की मृत्यु | Death of Sidhu Kanhu.

संथाल विद्रोह के इस भयंकर विद्रोह में संथालो की हार हुई ये लोग जो थे वो तीर धनुष से लड़ रहे थे जबकि अंग्रेज के पास आधुनिक हथियार थे और ये इन हथियारों के मदद से संथाल के आदिवासियों के साथ लड़ रहे थे जिसका सामना करना संथलों के बस में नहीं रह गया था इसलिए इस विद्रोह का अंत हो गया था सिद्धू को 1855 में पकड़कर पंचकठीया नमक जगह पर बरगद के पेड़ पर फासी दे दी गई और ये पेड़ आज भी पंचकठीया में स्थित है जिस जगह को आज शहीद स्थल कहा जाता है।
जबकि कान्हू को भोगनाडीह में फांसी दे दी गई लेकिन आज भी ये संथालो के दिल में जिंदा है और याद किए जाते है संथाल की भले ही हार हो लेकिन इस विद्रोह में अंग्रेजों की हुकूमत को जड़ से हिला कर रख दिया था कार्ल मार्क्स ने इस विद्रोह को भारत का प्रथम जनक्रांति कहा था आज भी 30 जून को भोगनाडीह में हूल दिवस पर सरकार द्वारा विकास मेला लगाया जाता है वीर शहीद सिद्धू और कान्हू को याद किया जाता है।
FAQs
संथाल विद्रोह का नायक,नेतृत्वकर्ता कौन थे?
संथाल विद्रोह का नायक,नेतृत्वकर्ता सिद्धू और कान्हू थे|
संथाल विद्रोह के जनक कौन थे?
संथाल विद्रोह के जनक सिद्धू और कान्हू थे।